9 सेवा के सामान्य नियम
1. संदर्भ
लोकतांत्रिक राज्य में नीति-निर्धारण सरकार
(कार्यपालिका) द्वारा किया जाता है। नीतियों के क्रियान्वयन एवं नियमन हेतु सरकारी
सेवाएँ स्थापित की जाती हैं। सरकारी सेवा का अर्थ है ऐसी सेवा जो सरकार के अधीन हो,
सेवक की नियुक्ति सरकार द्वारा हो और सेवक के
वेतन का भुगतान सरकारी राजस्व से होता हो। सरकारी तथा गैरसरकारी सेवाओं में
बुनियादी अंतर यह है कि सरकारी सेवकों की शक्तियाँ एवं कर्तव्य जहाँ कानून द्वारा
नियंत्रित होते हैं वहीं गैरसरकारी सेवकों की शक्तियाँ एवं कर्तव्य संविदा (Contract)
द्वारा नियंत्रित होते हैं। सरकारी सेवा में
आरंभ तो संविदा से होता है क्योंकि भर्ती का "प्रस्ताव" शासन द्वारा
किया जाता है और उसका "प्रतिग्रहण" अभ्यर्थियों द्वारा किया जाता है
किंतु नियुक्ति के उपरांत सरकारी सेवक सांविधानिक उपबंधों,
सेवाविधि एवं सेवा नियमों से विनियमित होने
लगता है, जिन्हें सरकार द्वारा एकतरफा,
यहाँ तक कि भूतलक्षी प्रभाव से भी,
विरचित एवं परिवर्तित किया जा सकता है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 309
के अंतर्गत सरकार अपने सेवकों के लिए नियम
बना सकती है तथा उनकी सेवा शर्तों को विनियमित कर सकती है। तद्नुसार उत्तर प्रदेश
राज्य के समस्त सरकारी सेवकों द्वारा की जाने वाली सरकारी सेवा वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-II भाग 2 से 4 में संकलित
सेवा नियमों (Service
Rules) से प्रशासित/विनियमित होती है। इस वित्तीय
हस्तपुस्तिका की संरचना निम्नवत् है -
भाग-2 मूल नियम (Fundamental
Rules या FR)
भाग-3 सहायक नियम (Subsidiary
Rules या SR)
भाग-4 प्रतिनिधायन (Delegation) एवं प्रपत्र (Forms)
सरकारी सेवा के सामान्य नियमों एवं शर्तों की
दृष्टि से उपर्युक्त भाग 2 के अध्याय 2 व 3 बहुत महत्वपूर्ण हैं।
2. महत्वपूर्ण परिभाषाएँ
(मूल नियम 9)
(क)
सरकारी कर्मचारी (GOVERNMENT
SERVANT)
:-
(मूल नियम 9
(7-ख))
सरकारी कर्मचारी का अर्थ है कि व्यक्ति जो
भारतीय गणतन्त्र में किसी असैनिक पद या असैनिक सेवा में नियुक्त हो तथा उत्तर
प्रदेश के शासकीय कार्यों के संचालन के सम्बन्ध में सेवा कर रहा हो और जिसकी सेवा
की शर्तें राज्यपाल द्वारा भारत सरकार अधिनियम 1935 की धारा 241(2)(ख) के अन्तर्गत निर्धारित की गई हों या
निर्धारित की जा सकती हों।
(ख)
संवर्ग (CADRE):-
(मूल नियम 9(4))
संवर्ग का अर्थ है किसी सेवा के पदों या किसी
सेवा के एक भाग के, जिसको एक अलग इकाई मानकर स्वीकृत किया गया हो,
पदों की कुल संख्या।
(ग)
ड्यूटी :-
(मूल नियम 9
(6) तथा सहायक नियम 2
से 9)
(क) ड्यूटी में निम्नलिखित सम्मिलित है -
(1)
परिवीक्षाधीन (प्रोबेशनर) या आप्रेंटिस के
रूप में की गई सेवा, इस प्रतिबन्ध के साथ कि उन मामलों को छोड़कर
जहाँ नियुक्ति या सेवा में सम्बन्धित विशेष नियमों में कोई अन्य प्राविधान हो,
यह सेवा बाद में स्थायी हो जाय।
(2) कार्यग्रहण-काल
(3)
औसत वेतन पर अतिरिक्त अवकाश जो सरकारी
कर्मचारी को कुत्ते काटने के इलाज के किसी केन्द्र पर उपचार करने के लिये दिया
जाय।
(ख) राज्यपाल यह घोषणा करते हुए आदेश जारी कर सकते हैं कि नीचे उल्लिखित
परिस्थितियों के सदृश परिस्थितियों में किसी सरकारी सेवक को ड्यूटी पर माना जा
सकता है।
(एक) भारत में या उसके बाहर किसी शिक्षण या प्रशिक्षण के दौरान ;
मूल नियम 9(6)(ख)(एक) के सम्बन्ध में राज्यपाल का आदेश
जब कभी ऐसे सरकारी सेवकों को,
जो प्रादेशिक सेना के सदस्य हैं,
सिविल प्रशासन की सहायता के लिए सैनिक ड्यूटी
पर या वास्तविक युद्ध के दौरान नियमित सशस्त्र सेना की अनुपूर्ति करने या सहायता
देने के लिए बुलाया जाता है या उन्हें किसी शिक्षण-पाठ्यक्रम में भाग लेने के लिए
अनुज्ञा दी जाय, तब उनके कार्यालय से उनकी अनुपस्थिति को सिविल
छुट्टी और पेन्शन के प्रयोजनार्थ ड्यूटी माना जायगा। यदि कोई सरकारी सेवक वर्धमान
वेतनक्रम में है तो उसकी सैनिक सेवा उनके सिविल पद पर लागू वेतन के समयमान में
वेतनवृद्धि के लिए और सिविल पेन्शन के लिए भी उसी प्रकार से गिनी जायगी मानो उसने
उस अवधि की सेवा अपने ही पद पर की हो।
(दो) ऐसे किसी छात्र की स्थिति में जो
वृत्तिकाग्राही हो या न हो, और जो भारत में या उसके बाहर किसी
विश्वविद्यालय, महाविद्यालय या विद्यालय में कोई प्रशिक्षण
पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करने पर सरकारी सेवा में नियुक्त किये जाने का हकदार हो,
सफलतापूर्वक पाठ्यक्रम पूरा करने और ड्यूटी
ग्रहण करने के बीच की अन्तरावधि में ;
(तीन) जब किसी सरकारी सेवक को ड्यूटी के लिये
रिपोर्ट करने के पश्चात किसी पद का भार ग्रहण करने के लिए अनिवार्य रूप से
प्रतीक्षा करनी पड़े, जिसके लिए वह किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं
है, तब इस प्रकार रिपोर्ट करने के दिनांक और उस
दिनांक के जब तक वह अपने कार्यभार ग्रहण करें, बीच की अन्तरावधि में;
(चार) मूल नियम 83 और 83-ए (विशेष विकलांगता अवकाश संबंधी) में बतायी गयी
परिस्थितियों में और शर्तों के अधीन रहते हुए, नि:शक्तता के प्रथम छ: मास के लिए और उसके
पश्चात् पूर्वोल्लिखित नियमों के उपबन्ध लागू होंगे।
(ग) मूल नियम 9(6)(ख) के अंतर्गत राज्यपाल द्वारा बनाए गए नियम
:-
(सहायक नियम 2-9)
- किसी समुचित रूप से प्राधिकृत शिक्षा या प्रशिक्षण के
पाठ्यक्रम की अवधि में सरकारी कर्मचारी ड्यूटी पर माना जाता है।
- सरकारी कर्मचारी जिसे .............. अनिवार्य विभागीय
परीक्षाओं में बैठना पड़ता हो, परीक्षा के स्थान को जाने तथा वहाँ से आने में लगे हुए
उचित समय में तथा परीक्षा के दिन या दिनों में ड्यूटी पर होता है। परीक्षा की
तैयारी के लिए तथा उसके पश्चात् विश्राम के लिए कोई समय अनुमन्य नहीं है।
(घ)
धारणाधिकार (LIEN) :- (मूल नियम 9
(13))
किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा किसी स्थायी पद
को मौलिक रूप से धारण करने के अधिकार को धारणाधिकार कहते हैं।
इसका तात्पर्य किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा
किसी स्थायी पद को या तो तुरन्त अथवा उसकी अनुपस्थिति की अवधि या अवधियों के समाप्त
होने पर मौलिक रूप से ग्रहण करने के अधिकार से है। इसमें वह सावधि पद (टेन्योर
पोस्ट) भी सम्मिलित है, जिस पर वह मौलिक रूप से नियुक्त किया गया हो।
(ड़)
स्थानापन्न (OFFICIATE) :-
(मूल नियम 9
(19))
कोई सरकारी कर्मचारी स्थानापन्न रूप से तब
कार्य करता है जब वह उस पद की ड्यूटी करता है जिस पर दूसरे व्यक्ति का धारणाधिकार
(लियन) हो। किन्तु यदि सरकार उचित समझे तो वह एक सरकारी कर्मचारी को ऐसे रिक्त पद
पर स्थानापन्न रूप से नियुक्त कर सकती है जिस पर किसी दूसरे सरकारी कर्मचारी का
धारणाधिकार (लियन) न हो।
(च)
लिपिक वर्गीय कर्मचारी (MINISTERIAL
SERVANT) :-
(मूल नियम 9
(17))
लिपिकवर्गीय कर्मचारी का अर्थ है अधीनस्थ
सेवा के वे सरकारी कर्मचारी, जिनकी ड्यूटी पूर्णतया लिपिकीय है तथा किसी दूसरे वर्ग के
सरकारी कर्मचारी, जिनको शासन के सामान्य अथवा विशेष आदेश
द्वारा इस वर्ग का घोषित कर दिया जाय।
(छ)
स्थायी पद (PERMANENT
POST) :-
(मूल नियम 9
(22))
वह पद जिसकी वेतन की एक निश्चित दर हो और जो
बिना समय की सीमा लगाए हुए स्वीकृत किया गया हो।
(ज)
अस्थायी पद (TEMPORARY
POST) :-
(मूल नियम 9(30))
वह पद जिसको एक निश्चित वेतन दर पर सीमित समय
के लिए स्वीकृत किया गया हो।
(झ)
सावधि पद (TENURE
POST)
:-
(मूल नियम 9(30-क))
वह स्थायी पद जिस पर कोई सरकारी कर्मचारी एक
निश्चित अवधि से अधिक समय तक तैनात नहीं रह सकता।
(=) प्रतिकर भत्ता (COMPENSATORY
ALLOWANCE)
:-
(मूल नियम 9
(5))
वह भत्ता जो किन्हीं विशेष परिस्थितियों में कार्य करने के कारण व्यक्तिगत व्यय
को पूरा करने के लिए दिया जाए। इसमें यात्रा भत्ता भी सम्मिलित है।
(ट)
शुल्क (FEE)
:-
(मूल नियम 9(6-क))
वह आवर्तक या अनावर्तक भुगतान जो सरकारी
कर्मचारी को उत्तर प्रदेश की संचित निधि के अतिरिक्त अन्य स्त्रोत से सीधे अथवा
अप्रत्यक्ष रूप से शासन
के मध्यवर्ती के माध्यम से किया जाय। इसमें निम्नलिखित सम्मिलित नहीं है -
1.
अनार्जित आय जैसे कि सम्पत्ति से आय,
लाभांश और प्रतिभूतियों पर ब्याज,
और
2.
साहित्यिक, सांस्कृतिक , कलात्मक, वैज्ञानिक या तकनीकी कार्यों से आय,
यदि ऐसे कार्यों में सरकारी सेवक को अपनी सेवा के
दौरान अर्जित ज्ञान की सहायता न ली हो।
(ठ)
मानदेय (HONOURARIUM) :-
(मूल नियम 9(9))
वह आवर्तक या अनावर्तक भुगतान जो किसी सरकारी
कर्मचारी को यदाकदा किये जाने वाले किसी विशिष्ट कार्य के लिए उत्तर प्रदेश की
संचित निधि या भारत की संचित निधि से पारिश्रमिक के रूप में दिया जाय।
3. सेवा की सामान्य शर्तें (General
Conditions of Service)
(क)
सेवा में प्रवेश के लिए स्वास्थ्य के
चिकित्सकीय प्रमाण-पत्र की अनिवार्यता :-
(i) कोई व्यक्ति सरकारी सेवा में किसी स्थायी पद पर स्वास्थ्य के चिकित्सीय
प्रमाण-पत्र के बिना मौलिक रूप से नियुक्त नहीं किया जा सकता। चिकित्सा
प्रमाण-पत्र ऐसे प्रपत्र में दिया जायेगा और उस पर ऐसे चिकित्सक या अन्य
अधिकारियों द्वारा, जिन्हें राज्यपाल सामान्य नियम या आदेश
द्वारा विहित करें, हस्ताक्षर किया जायेगा। राज्यपाल व्यक्तिगत
मामलों में प्रमाण-पत्र देने से विमुक्त कर सकते हैं और किसी सामान्य आदेश द्वारा
किसी निर्दिष्ट वर्ग के सरकारी सेवकों को इस नियम के प्रवर्तन (Operation)
से छूट दे सकते हैं। (मूल नियम 10)
(iii) निम्नलिखित मामलों में स्वास्थता के प्रमाण-पत्र की अपेक्षा नहीं की जायेगी- (सहा0 नियम 11)
1.
भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये गए व्यक्ति से,
2.
निम्न श्रेणी से प्रवर (Superior) सेवा में पदोन्नति पाए हुए सरकारी कर्मचारी
से,
3.
ऐसी प्रतियोगिता परीक्षाओं के आधार पर नियुक्त हुए व्यक्ति
से, जिनके लिए चिकित्सा परिषद द्वारा स्वास्थ्य
परीक्षा निर्धारित है, यदि वे चिकित्सा-परिषद द्वारा स्वास्थ्य
परीक्षा किए जाने की तिथि के 6 महीने के भीतर नियुक्त कर दिये गए हों,
4.
भारतीय वन महाविद्यालय, देहरादून में उच्च वन सेवा के पाठ्यक्रम के
प्रशिक्षण के लिए चुने जाने के पूर्व उन व्यक्तियों से जिनकी चिकित्सा परिषद ने
स्वास्थ्य परीक्षा करके स्वस्थ घोषित कर दिया हो,
5.
उन व्यक्तियों से जिनकी भारतीय वन रेंजर्स कालेज,
देहरादून में वन रेंजर के पाठ्यक्रम के
प्रशिक्षण के लिए चुने जाने के पूर्व किसी सिविल सर्जन ने परीक्षा करके स्वस्थ
घोषित कर दिया हो,
उन व्यक्तियों से जिनको भारतीय वन रेंजर्स
कालेज, देहरादून में वन रेंजर के पाठ्यक्रम के
प्रशिक्षण के लिए चुने जाने के पूर्व किसी सिविल सर्जन ने परीक्षा करके स्वस्थ
घोषित कर दिया हो,
6.
सार्वजनिक निर्माण-विभाग के उन इंजीनियर अधिकारियों से
जिन्हें राजपत्रित पद पर अपनी पहली नियुक्ति पर चाहे वह पद स्थायी हो या अस्थायी,
चिकित्सा-परिषद लखनऊ ने परीक्षा करके स्वस्थ
घोषित कर दिया हो, जब तक कि स्थायीकरण के समय किसी विशेष कारण
से किसी अधिकारी से दूसरी स्वास्थ्य परीक्षा कराने की अपेक्षा न की जाय।
7.
अक्षम व्यक्तियों से, जिनका परीक्षण शारीरिक रूप से अक्षम
व्यक्तियों की राज्य सेवा में प्रवेश दिलाने हेतु राज्य सरकार द्वारा गठित
'मेडिकल बोर्ड' द्वारा किया गया हो तथा जिन्हें उपयुक्त पाया
गया हो।
(iii) कोई भी व्यक्ति किसी स्थायी/अस्थायी पद पर स्वस्थता के
चिकित्सकीय प्रमाण-पत्र के बिना मौलिक रूप से नियुक्त नहीं किया जा सकता। चिकित्सा
प्रमाण-पत्र का प्रारूप सहायक नियम-10 में निरूपित है। राजपत्रित अधिकारियों के
लिए डिविजनल मेडिकल बोर्ड का स्वस्थता प्रमाण-पत्र आवश्यक है जबकि अराजपत्रित
कर्मचारियों के मामले में राजकीय जिला चिकित्सालयों के मुख्य चिकित्साधिकारी का
प्रमाण-पत्र आवश्यक है।
(सहायक नियम 12)
(iv) शासन की विज्ञप्ति संख्या सा-1-152/दस (0934) 15/67 दिनांक 10-4-90 द्वारा सहायक नियम 12
में संशोधित व्यवस्था प्रभावी की गई है। अब
अराजपत्रित कर्मचारियों की सरकारी सेवा में नियुक्ति हेतु स्वास्थ्य परीक्षा जिला अस्पताल
के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक द्वारा की जायेगी न कि जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी
द्वारा। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के निर्णय के विरूद्ध सम्बन्धित कर्मचारी डिविजनल
मेडिकल बोर्ड में अपील कर सकता है।
(v) स्थायी या विशेष चिकित्सा परिषद के निर्णय के विरूद्ध अपील करने का कोई अधिकार
नहीं होगा परन्तु यदि प्रस्तुत किये गये साक्ष्य के आधार पर शासन संतुष्ट हो कि
पहले चिकित्सा परिषद के निर्णय में कुछ त्रुटि की संभावना है,
तो शासन को दूसरे मेडिकल बोर्ड के सामने अपील
करने की अनुमति देने का अधिकार होगा।
(सहायक नियम 15-क)
(ख)
सरकारी सेवक का पूर्ण समय सरकार के अधीन :-
(मूल नियम 11)
जब तक कि किसी मामले में स्पष्ट रूप से
अन्यथा कोई व्यवस्था न की गई हो, सरकारी कर्मचारी का पूर्ण समय सरकार के अधीन है और
आवश्यकतानुसार सक्षम अधिकारी द्वारा वह किसी प्रकार की सेवा में किसी भी समय लगाया
जा सकता है। इसके लिए वह अतिरिक्त पारिश्रमिक के लिए दावा नहीं कर सकता,
चाहे उससे जिस भी प्रकार की सेवा ली जाये।
मानदेय स्वीकृत करने के आदेशों में इस आशय का उल्लेख करना पड़ता है कि इस नियम की
व्यवस्थाओं को यथावश्यक दृष्टिगत रखते हुए यह मानदेय स्वीकृत किया जा रहा है।
(ग)
पद पर नियुक्ति :-
(i) दो या उससे अधिक सरकारी कर्मचारी एक ही समय में एक ही
स्थायी पद पर स्थायी रूप से नियुक्त नहीं किये जा सकते। (मूल नियम 12
(क))
(ii) केवल अस्थायी प्रबन्ध को छोड़कर कोई सरकारी कर्मचारी दो या
उससे अधिक पदों पर एक ही समय में स्थायी रूप से नियुक्त नहीं किया जा सकता।
(मूल नियम 12
(ख))
(iii) किसी सरकारी कर्मचारी को ऐसे पद पर स्थायी रूप से नियुक्त
नहीं किया जा सकता जिस पर किसी सरकारी कर्मचारी का धारणाधिकार हो।
(मूल नियम 12
(ग))
(घ)
धारणाधिकार (लियन) संबंधी प्रावधान :-
(i) कार्मिक 4
अनुभाग की विज्ञप्ति संख्या 1648/47-का-4-90-48/79 दिनांक 7-2-91 द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य के सरकारी सेवको
की स्थायीकरण नियमावली 1991 प्रकाशित की
गयी। इसके अनुसार सेवा शर्तों में अत्यन्त महत्वपूर्ण व्यवस्था कर दी गयी कि
अस्थायी पद जो नियमित रूप से वर्षानुवर्ष स्वीकृत होते रहते हैं,
के सापेक्ष भी स्थायीकरण (मौलिक नियुक्ति) की
जा सकती है तथा उन सेवकों का धारणाधिकार अस्थायी पद पर हो जायेगा तथा उनको वे सभी
लाभ अनुमन्य होंगें जो किसी स्थायी पद पर कर्मचारी को स्थायीकरण होने पर मिलते
हैं।
(ii) धारणाधिकार कब तक -
(मूल नियम 13)
जब तक किसी स्थायी पद पर स्थायी रूप से
नियुक्त सरकारी कर्मचारी का धारणाधिकार कतिपय दशाओं के अन्तर्गत निलम्बित अथवा
स्थानान्तरित नहीं कर दिया जाता उस पर उसका धारणाधिकार रहता है।
(क) जब तक वह उस पद की ड्यूटी करता रहे।
(ख) जब वह बाह्य सेवा में हो या किसी अस्थायी पद
पर नियुक्त हो या किसी दूसरे पद पर स्थानापन्न रूप से कार्य कर रहा हो।
(ग) दूसरे पद पर स्थानान्तरित होने पर कार्यभार
ग्रहण काल में जब तक कि वह स्थायी रूप से किसी निम्न वेतन वाले पद पर स्थानान्तरित
नहीं हो जाय और उस दशा में उसका धारणाधिकार भी उसी तिथि से स्थानान्तरित हो जाता
है जिस तिथि से वह अपने पुराने पद से कार्यमुक्त हो जाता है।
(घ) जब वह छुट्टी पर हो (नियम 86
या 86 क के अधीन जैसी भी दशा से स्वीकृत की गई
छुट्टी को छोड़कर) और
(च) जब वह निलम्बित हो।
(iii) धारणाधिकार का निलम्बन -
(मूल नियम 14)
निम्नलिखित दशाओं में किसी सरकारी सेवक का
धारणाधिकार निलम्बित किया जा सकता है :-
(मूल नियम 14
(क))
1. यदि सरकारी सेवक स्थायी रूप से नियुक्त हो जाय-
क- किसी सावधि पद पर,
ख- अपने संवर्ग से बाहर किसी स्थायी पद पर,
ग- अनन्तिम रूप से किसी ऐसे पद पर जिस पर दूसरे सरकारी सेवक का धारणाधिकार हो
उसका धारणाधिकार बना रहता है, यदि उसका धारणाधिकार निलम्बित न किया जाता।
2. सरकार अपने विकल्प पर किसी स्थायी पद पर स्थायी रूप से नियुक्त सरकारी
कर्मचारी के लियन को निलम्बित कर सकती है यदि वह भारत से बाहर प्रतिनियुक्ति पर
चला जाये या वाह्य सेवा में स्थानान्तरित हो जाय। यदि उक्त परिस्थितियों में
सरकारी सेवक को 3 वर्ष तक वापस आने की सम्भावना न हो,
तो उस पद पर किसी दूसरे कर्मचारी को
प्रोविजनल पर्मानेन्ट किया जा सकता है। किन्तु उसके वापस आ जाने पर जिस कर्मचारी
को प्रोविजनल पर्मानेन्ट किया जायेगा वह पुन: अस्थायी हो जायेगा यदि इस बीच में
किसी अन्य स्थायी रिक्ति में उसे स्थायी न कर दिया गया हो।
(मूल नियम 14
(ख))
3. किसी भी परिस्थिति में किसी भी सरकारी सेवक का एक सावधि पद से लियन निलम्बित
नहीं किया जा सकेगा। यदि वह किसी अन्य स्थायी पद पर स्थायी रूप से नियुक्त हो जाता
है तो सावधि पद पर उसका धारणाधिकार समाप्त कर देना चाहिए।
(मूल नियम 14
(ग))
4. यदि यह संज्ञान में हो कि किसी सरकारी कर्मचारी का अपने
संवर्ग से बाहर स्थानान्तरण हो गया हो, अपने स्थानान्तरण के 3
वर्ष के भीतर ही अधिवर्षता पेंशन पर सेवा
निवृत्त होने वाला है तो स्थायी पद से उसका लियन निलम्बित नहीं किया जा सकता। (मूल नियम 14 के सम्बन्ध में राज्यपाल का आदेश)
(ड़)
एक पद से दूसरे पद पर स्थानान्तरण :-
(मूल नियम 15)
(i) किसी भी सरकारी कर्मचारी को एक पद से दूसरे पद पर स्थानान्तरित किया जा सकेगा,
परन्तु सिवाय (1)
अदक्षता या दुर्व्यवहार के कारण,
या
(2) उसके लिखित अनुरोध पर,
किसी सरकारी सेवक को ऐसे पद पर,
जिसका वेतन उस स्थायी पद के वेतन से कम हो,
जिस पर, उसका धारणाधिकार हो या धारणाधिकार होता यदि
उसका धारणाधिकार नियम 14 के अधीन
निलम्बित न किया गया होता, मौलिक रूप से स्थानान्तरित नहीं किया जायेगा,
या नियम 49 के अन्तर्गत आने वाले मामले के सिवाय,
स्थानापन्न कार्य करने के लिए नियुक्त नहीं
किया जायेगा।
(ii) इस नियमावली के किसी बात के अन्यथा होते हुए भी राज्यपाल किसी सरकारी सेवक का
स्थानान्तरण लोकहित में किसी अन्य संवर्ग के पद पर अथवा संवर्ग के वाह्य पर पर कर
सकते हैं।
(iii) इस नियम के खण्ड (क) में या नियम 9 के खण्ड (13) में दी गयी कोई बात किसी सरकारी सेवक को उस
पर पद, जिस पर इसका धारणाधिकार होता यदि उसे नियम 14
के खण्ड (क) में उपबन्धों के अनुसार निलम्बित
न किया गया होता, पुन: स्थानान्तरण करने से नही रोकेगी।
(च)
सामान्य भविष्य निर्वाह निधि में अंशदान देना
अनिवार्य :-
(मूल नियम 16)
सरकारी सेवक को राज्यपाल द्वारा विनिर्दिष्ट
नियमों के अनुसार किसी भविष्य निधि, पारिवारिक पेंशन निधि या अन्य दूसरी निधि में
अंशदान करना अनिवार्य होता है।
(छ)
किसी पद पर वेतन प्राप्त करने का प्रारम्भ व
समाप्ति :-
(मूल नियम 17)
सरकारी सेवक कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से अपने पद की अवधि तक सम्बद्ध वेतन
और भत्तों को पाने लगता है और जैसे ही उसके द्वारा उस पद का कार्य करना समाप्त हो
जाय, वैसे ही उसका वेतन पाना समाप्त हो जायेगा।
सरकारी कर्मचारी अपने पद की अवधि पर सम्बद्ध
वेतन तथा भत्ते उस तिथि से पाने लगेगा जिससे वह उस पद का कार्यभार ग्रहण करे,
बशर्ते कार्यभार उस तिथि के पूर्वान्ह में
हस्तान्तरित हुआ हो। यदि कार्यभार अपरान्ह में हस्तान्तरित हो तो वह उसके अगले दिन
से पाना आरम्भ करता है।
(ज)
ड्यूटी से लगातार 5
वर्ष से अनुपस्थिति :-
(मूल नियम 18)
जब तक शासन किसी मामले की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कोई दूसरा
निर्णय घोषित न कर दें, भारत में वाह्य सेवा को छोड़कर,
अवकाश पर या बिना अवकाश के अपनी ड्यूटी से
पाँच वर्ष से अधिक लगातार अनुपस्थित रहने पर जब तक शासन कुछ अन्यथा न अवधारित (determinal)
करे उसे कोई अवकाश स्वीकृत नहीं किया जा सकता
तथा उसके विरूद्ध अनुशासनिक कार्यवाही की जानी चाहिए। पाँच वर्ष से अधिक अवकाश पर
रहने के पश्चात बिना नियुक्ति प्राधिकारी की अनुमति के उसको ड्यूटी पर उपस्थित
होने नहीं देना चाहिए। (विज्ञप्ति संख्या जी-4-34/दस-89-4-83, दिनांक 12.9.89
तथा शासनादेश संख्या जी-2-729/दस, दिनांक 6-6-2001)
(झ)
वेतन व भत्तों को विनियमन :-
(मूल नियम 18-क)
गवर्नमेन्ट आफ इण्डिया ऐक्ट,
1935 की धारा 241(3)(क) और 258(2)(ख) के प्रतिबन्धों को ध्यान में रखते हुए,
सरकारी कर्मचारियों के वेतन तथा भत्ते का
दावा उन नियमों द्वारा विनियमित होता है जो वेतन या भत्ता अर्जित करते समय लागू
रहे हों और अवकाश का दावा उन नियमों द्वारा विनियमित होता है जो अवकाश के लिए
आवेदन करने और स्वीकृत होते समय लागू रहे हों।
4. सेवा पुस्तिका
(क)
सेवा पुस्तिका का रख-रखाव :-
- सेवापुस्तिका उस कार्यालय के अधीक्षक की अभिरक्षा में
रहती है जिसमें सरकारी सेवक सेवा करता है और उसके साथ एक कार्यालय से दूसरे
कार्यालय स्थानान्तरित होती रहती है।(सहायक नियम 136)
- सरकारी सेवक की सरकारी सेवा से सम्बन्धित प्रत्येक
घटना का उल्लेख सेवापुस्तिका में किया जायेगा। प्रत्येक प्रविष्टि उसके
कार्यालयाध्यक्ष द्वारा प्रमाणित की जायेगी। मण्डलायुक्त के कार्यालय के
लिपिकों की सेवापुस्तिका में की गयी प्रविष्टियाँ मुख्य सहायक द्वारा
प्रमाणित की जायेगी। मुख्य सहायक की सेवापुस्तिका आयुक्त द्वारा प्रमाणित की
जायेगी।
- राजपत्रित और अराजपत्रित दोनो प्रकार के सरकारी सेवकों
की सेवा अभिलेख राज्यपाल द्वारा बनाये गये नियमों तथा नियंत्रक सम्परीक्षक
द्वारा जारी अनुदेशों के अनुसार रखे जाते हैं।
(मूल नियम 74-क)
- सेवा अभिलेखों के रख रखाव की प्रक्रिया के विषय में
राज्यपाल द्वारा बनाये गये नियम।
(सहायक नियम 134 से 142)
- महासम्परीक्षक के अनुदेश वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-II, भाग 2 से 4, परिशिष्ट-ए के अनुदेश 35,
36
- सेवापुस्तिका का रख-रखाव वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-V भाग-1 के नियम 142 से 144-ए
- शासनादेश संख्या सा-3-1713/दस-89-933/89, दिनांक 28 जुलाई, 1989 तथा सा-3-1644/दस-904/94, दिनांक 2 नवम्बर, 1995 सेवापुस्तिका को पूर्ण किया जाना तथा सत्यापन।
पुनरावलोकन की कमी को पूरा किये जाने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति।
(ख)
सेवा पुस्तिका का प्रारम्भ :-
(सहायक नियम 134
व 135)
प्रत्येक राजपत्रित और अराजपत्रित सरकारी
सेवक (ऐसे राजपत्रित अधिकारी को छोड़कर जो अपने वेतन का स्वयं आहरण अधिकारी है और
जिनकी वेतनपर्ची कोषागार निदेशालय/इरला चेक विभाग, उत्तर प्रदेश सचिवालय तथा पुलिस मुख्यालय
द्वारा जारी होती है) चाहे वह स्थायी पद पर कार्यरत हों या स्थानापन्न रूप से
कार्य कर रहें हो या अस्थायी हों, महालेखा परीक्षक द्वारा निर्धारित प्रपत्र-13
पर सेवापुस्तिका रखी जाती है जिसमें उनकी
शासकीय जीवन की प्रत्येक घटना का उल्लेख किया जाता है। प्रत्येक प्रविष्टि
कार्यालयाध्यक्ष द्वारा प्रमाणित की जायेगी, तथा कार्यालयाध्यक्ष की स्वयं की
सेवापुस्तिका उनके एक स्तर के ऊपर के अधिकारी द्वारा प्रमाणित की जायेगी।
(ग)
सेवा पुस्तिका में प्रविष्टियाँ :-
(सहायक नियम 136)
कार्यालयाध्यक्ष को देखना चाहिए कि
सेवापुस्तिका में सभी प्रविष्टियाँ समुचित रूप से कर दी गयी हैं और उन्हें
प्रमाणित कर दिया गया है। प्रविष्टियों को मिटाया नहीं जाना चाहिए,
न उनके ऊपर ओवर राइटिंग की जानी चाहिए। सभी
संशोधन स्वच्छता से किये जाने चाहिए और उचित रूप से प्रमाणित किये जाने चाहिए।
परिशिष्ट क -
बायाँ पृष्ठ (कार्यालयाध्यक्ष द्वारा
प्रमाणित अंगुलियों और अंगूठे के चिन्ह)
परिशिष्ट ख - दायाँ पृष्ठ (सरकारी कर्मचारी का विवरण) -
- अनुसूचित जाति/जनजाति का उल्लेख सक्षम अधिकारी का
प्रमाण-पत्र देखकर करना चाहिए।
- जन्मतिथि हाई स्कूल प्रमाण-पत्र या स्कूल छोड़ने के
प्रमाण पत्र के आधार पर भरी जानी चाहिए और इसे शब्दों में भी लिख देना चाहिए।
एक बार लिखी गयी जन्म-तिथि में लिपिकीय त्रुटि सुधारने को छोड़कर कोई
परिवर्तन नहीं हो सकता।
- जन्मतिथि का निर्धारण :-
(वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-पाँच भाग-1, अनुच्छेद 127ए)
शासन में कुछ ऐसे पद है जिन पर शैक्षिक
अर्हतायें निर्धारित नहीं हैं, जैसे जमादार, चौकीदार। ऐसे मामलें में जन्म-तिथि स्कूल
छोड़ने के प्रमाण-पत्र न होने से या अशिक्षित होने के कारण निर्धारित नही हो पाती
तो जिस दिन वह सेवा में प्रवेश करता है और जो आयु मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा
स्वास्थता के प्रमाण-पत्र में दिखायी जाती है, उसके आधार पर जन्म तिथि निर्धारित की जाती
है। उदाहरण- एक जमादार दिनांक 05.05.2005 को सेवा में प्रवेश करता है। उसके पास कोई स्कूल छोड़ने का
प्रमाण-पत्र नहीं है, क्योंकि वह अशिक्षित है। मुख्य
चिकित्साधिकारी स्वस्थता प्रमाण-पत्र में उसकी जन्म तिथि 20
वर्ष घोषित करते हैं। प्रवेश के दिनांक 05.05.2005
में से 20 वर्ष कम करके उसकी जन्म तिथि 05.05.1985
निर्धारित कर दी जायेगी।
यदि कर्मचारी की जन्म तिथि का साल और महीना
ज्ञात है तो माह की 16 तारीख
जन्म-तिथि मानी जायेगी। इस प्रकार एक बार निर्धारित की गयी जन्म-तिथि में कोई
परिवर्तन नहीं हो सकता है और उसके लिए प्रार्थना-पत्र किन्हीं भी परिस्थितियों में
ग्रहण नहीं किया जा सकता।
(नियुक्ति
अनुभाग-1, अधिसूचना संख्या-41/2-69 नियुक्ति-4,
दिनांक 28
मई, 1974)
- शैक्षिक अर्हतायें मूल प्रमाण-पत्रों के आधार पर अंकित
होनी चाहिए।
- परिशिष्ट ख पर कर्मचारी का निधि लेखा संख्या तथा
राजकीय बीमा पालिसी,
यदि कोई हो की संख्या का स्पष्ट उल्लेख लाल स्याही से
होना चाहिए।
- इस पृष्ठ की प्रविष्टियाँ प्रत्येक पाँचवे वर्ष
प्रमाणित होनी चाहिए। जिसके प्रमाण स्वरूप कर्मचारी/अधिकारी को अपने तिथि
सहित हस्ताक्षर क्रमश: स्तम्भ 10 एवं 11 में
करने चाहिए।
- वित्त विभाग के शासनादेश संख्या बीमा-2545/दस-54/1981 दिनांक 24-3-83 के अन्तर्गत सामूहिक बीमा योजना कटौतियों का वार्षिक
विवरण निर्धारित प्रपत्र में सेवा पुस्तिका में रखा जाना चाहिए। इसके
अतिरिक्त सेवापुस्तिका में मृत्यु तथा सेवानिवृत्ति आनुतोषिक, पारिवारिक पेंशन एवं सामूहिक बीमा योजना के नामांकन
प्रपत्र भी विधिवत् रखे जाने चाहिए।
परिशिष्ट-ग (सरकारी सेवा संबंधी विवरण) -
स्तम्भ-1
सेवा पुस्तिका के इस स्तम्भ में पदनाम जिस पर
नियक्ति हुई हो स्पष्ट शब्दों में वेतनमान के पूर्ण विवरण सहित लिखा जाना चाहिए।
स्तम्भ 19 में उस आदेश
की संख्या एवं दिनांक का पूर्ण सन्दर्भ दिया जाना चाहिए जिसके अन्तर्गत नियुक्ति
हुई हो।
स्तम्भ-2
इस स्तम्भ में यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि
स्तम्भ 1 में दर्शायी नियुक्ति पर कर्मचारी/अधिकारी
स्थायी है अथवा अस्थाई, वह उस पद पर मौलिक
रूप से नियुक्त है या स्थानापन्न रूप से
कार्यरत है।
स्तम्भ-3
यदि स्थानापन्न रूप से कार्य कर रहा हो तो
मौलिक पद यदि कोई हो तो उसका उल्लेख कर देना चाहिए। यदि ऐसा न हो तो डैश लगा देना
चाहिए।
स्तम्भ-4
पूर्णतया रिक्त स्थान में नियुक्ति होने की
दशा में उस व्यवस्था का उल्लेख किया जाना चाहिए। आदेश की प्रति संलग्न किया जाना
चाहिए।
स्तम्भ-5
मौलिक रूप से धृत स्थायी पद के वेतन का
उल्लेख किया जाना चाहिए। ऐसा न होने की दशा में डैश लगा देना चाहिए।
स्तम्भ-6
स्थानापन्न पद का वेतन अंकित किया जाना
चाहिए।
स्तम्भ-7 यदि अन्य कोई परिलब्धियाँ हों जो वेतन के अन्तर्गत आती हों उसका उल्लेख करते
हुए धनराशि लिखी जानी चाहिए।
स्तम्भ-8
नियम/शासनादेश की संख्या/दिनांक जिसके अधीन
स्तम्भ-7 की धनराशि स्वीकृत की गयी हो,
का उल्लेख इस स्तम्भ में होना चाहिए।
स्तम्भ-9 नियुक्ति का दिनांक जिस तिथि को कर्मचारी ने कार्यभार ग्रहण किया हो,
इस स्तम्भ में उसका उल्लेख होना चाहिए।
स्तम्भ-10 कर्मचारी के हस्ताक्षर इस स्तम्भ में प्रत्येक प्रविष्टि के विरूद्ध कराये
जाने चाहिए।
स्तम्भ-11 नियुक्ति की समाप्ति का दिनांक इस स्तम्भ में दिया जाना चाहिए। यह समाप्ति
वेतन वृद्धि, पदोन्नति, पदावनति, स्थानान्तरण, सेवाच्युति आदि किसी कारण से हो सकती है।
स्तम्भ-12 में नियुक्ति की समाप्ति के कारण संक्षेप में लिखे जाने चाहिए। निलम्बन की दशा
में या किसी अन्य कारण से सेवा के क्रम में भंग होने का उल्लेख अवधि के पूर्ण
विवरण सहित सेवा पुस्तिका के पृष्ठ के ओर छोर तक होना चाहिए तथा वह प्रविष्टि
सक्षम अधिकारी द्वारा सत्यापित होनी चाहिए। यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या निलम्बन
अवधि की गणना पेंशन तथा अन्य सेवा सम्बन्धी मामले के लिए होगी। सक्षम अधिकारी
द्वारा जारी पुन: स्थापना के आदेश की प्रति संलग्न की जानी चाहिए।
स्तम्भ-13 स्तम्भ 2 से 12 तक की प्रविष्टियों को सत्यापित करने वाले
कार्यालयाध्यक्ष या अन्य प्राधिकारी को अपने हस्ताक्षर इस स्तम्भ में करने चाहिए।
स्तम्भ-14 से 18 अवकाश से सम्बन्ध रखते हैं। कर्मचारी द्वारा लिया गया नियमित अवकाश का प्रकार,
उसकी अवधि, स्वीकृति आदेश की संख्या एवं दिनांक इन
स्तम्भों में अंकित किये जाने चाहिए और अन्तिम स्तम्भ में सत्यापित करने वाले
अधिकारी को अपने हस्ताक्षर करने चाहिए।
(घ)
सेवा का सत्यापन :-
- वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-II भाग 2 से
4
के पैरा 142 के सहायक नियम 137, 142 वित्तीय नियम संग्रह खण्ड-V भाग-1 के
अनुसार प्रत्येक राजकीय सेवक की सेवाओं का सत्यापन प्रत्येक वित्तीय वर्ष में
नियत समय पर प्रपत्र 15
(जो सेवा पुस्तिका का अंग होना चाहिए) में कार्यालयाध्यक्ष
द्वारा वेतन बिल से किया जाना चाहिए। यदि किसी अवधि का सत्यापन कार्यालय
अभिलेख से न हो पाये,
उस अवधि के संबंध में कर्मचारी का शपथ पत्र लेकर
सेवापुस्तिका में लगा देना चाहिए और उपर्युक्त प्रपत्र 15 के अभ्युक्ति के स्तम्भ में यह स्पष्ट रूप से लिख देना
चाहिए।
(शासनादेश संख्या : सा-3-1713/दस, दिनांक 28-7-89)
- स्थानान्तरण होने पर एक कार्यालय में की गयी सम्पूर्ण
सेवाओं का सत्यापन सेवापुस्तिका में वेतन बिल/भुगतान चिट्ठे से
कार्यालयाध्यक्ष के हस्ताक्षर के अन्तर्गत किया जाना चाहिए।
- वित्त (सामान्य) अनुभाग-1 शासनादेश संख्या-जी-1-789/(128)-82
दिनांक 8 जून, 1982 के अनुसार कार्यालयाध्यक्ष या अन्य कोई अधिकारी जो
सेवापुस्तिका के रख-रखाव के लिये उत्तरदायी है, विलम्बतम 31 मई तक प्रत्येक वित्तीय वर्ष सेवा के सत्यापन का
प्रमाण-पत्र जारी करेगा। सेवापुस्तिका खो जाने पर इन प्रमाण-पत्रों के आधार
पर सेवानिवृत्तिक देयों के मामले तय किये जायेंगे।
- प्रत्येक कार्यालयाध्यक्ष का यह कर्तव्य है कि उसके
प्रशासनिक नियंत्रण में आने वाले समस्त कर्मचारियों को प्रत्येक वर्ष उनकी
सेवापुस्तिका दिखाये और उच्च अधिकारी को पूर्व वित्तीय वर्ष के बारे में
प्रत्येक वर्ष सितम्बर के अन्त तक प्रमाण-पत्र भेजें कि उसने ऐसा कर दिया है।
सम्बन्धित कर्मचारी को भी सेवापुस्तिका में हस्ताक्षर करते समय सभी
प्रविष्टियों की समुचित जाँच कर लेनी चाहिए।
(सहायक नियम 137)
(ड़)
सेवापुस्तिका की वापसी/नष्ट किया जाना - (सहायक नियम 138-ए)
- अधिवर्षता पर सेवानिवृत्ति की दशा में पेंशन अंतिम रूप
से स्वीकृत होने के पश्चात सरकारी सेवक को उसकी प्रार्थना पर सेवापुस्तिका
लौटा दी जाय अन्यथा सेवानिवृत्ति के 5 वर्ष बाद या मृत्यु के छ: माह बाद जो घटना पहले हो, सेवापुस्तिका नष्ट कर दी जाये।
- सेवारत मृत्यु होने पर यदि मृत्यु के छ: महीने के
अन्दर उसका कोई रिश्तेदार सेवापुस्तिका की वापसी के लिए प्रार्थना-पत्र
प्रस्तुत नहीं करता तो सेवापुस्तिका नष्ट कर देनी चाहिए।
- अधिवर्षता की आयु से पूर्व सेवा में त्यागपत्र या बिना
किसी अपराध के सेवा मुक्त किया जाना। ऐसी घटना के 5 वर्ष के बाद तक सेवापुस्तिका रखी जानी चाहिए यदि
सरकारी सेवक उपर्युक्त अवधि की समाप्ति के 6 माह के अन्दर उसकी वापसी के लिए प्रार्थना-पत्र
प्रस्तुत करता है तो सेवापुस्तिका में सेवानिवृत्ति, त्याग-पत्र अथवा सेवा से मुक्त किये जाने की प्रविष्टि
करके सेवापुस्तिका उसे दे दी जाय। उपर्युक्त अवधि की समाप्ति पर सेवा
पुस्तिका नष्ट कर दी जाय।
- सेवा में विमुक्ति/पृथक्करण के 5 वर्ष बाद तक या मृत्यु के छ: माह बाद तक, जो भी घटना पहले हो रखी जानी चाहिए। उसके बाद उसे नष्ट
कर देना चाहिए।
- यदि सेवा से विमुक्त/पृथक्कृत कर्मचारी की सेवा में
पुन: वापसी हुई हो,
तो सेवापुस्तिका संबंधित अधिष्ठान को भेज दी जानी
चाहिए।
- सेवापुस्तिका के रख-रखाव के विषय में विस्तृत अनुदेश
सेवा पुस्तिका के प्रारम्भ में मुद्रित रहते हैं उनका सावधानी से अनुपालन
करना चाहिए।
(च)
सेवापुस्तिका के सम्बन्ध में आहरण-वितरण
अधिकारियों के लिए चेक लिस्ट :- आहरण- वितरण अधिकारियों के लिए निम्नलिखित बिन्दु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं :-
- पदोन्नति आदि जब और जैसे भी हो, की प्रविष्टियाँ सेवापुस्तिका में कर दी जाय और उनका
अभिप्रमाणन कर दिया जाय।
- जिन राजकीय कर्मचारियों की 1-4-1965
के पूर्व स्थायी पेंशन योग्य अधिष्ठान में नियुक्ति की
गयी हो वहाँ उनकी सेवापुस्तिका में आवश्यक रूप से पेंशन तथा पारिवारिक पेंशन
नियमों के अन्तर्गत उनके अधुनातन विकल्प की प्रविष्टि कर दी जानी चाहिए।
सेवापुस्तिका में इस प्रकार की घोषणाओं के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं
तथा विकल्प का चुनाव आदि की प्रविष्टि कर दी जाय और उनका अभिप्रमाणन भी कर
दिया जाये।
- सेवापुस्तिका में कार्यवाहक पद की प्रकृति का संदर्भ
दिया जाना चाहिए और इसके अतिरिक्त उस पद पर होने वाली नियुक्ति के फलस्वरूप
किये जाने वाली विभिन्न प्रबन्धों की प्रविष्टि इनके आदेशों सहित की जानी
चाहिए।
- सेवापुस्तिका में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि क्या
स्थायीकरण के पूर्व कर्मचारी को परिवीक्षा पर रखा गया है।
- अस्थायी व कार्यवाहक राजकीय कर्मचारियों के बारे में
इस बात का भी प्रमाण सेवापुस्तिका में अंकित होना चाहिए कि यदि वह राजकीय
कर्मचारी अवकाश पर न गया होता तो उस समय पर वस्तुत: कार्य करता रहता।
- सेवापुस्तिका में अन्तिम तीन वर्षों में की गयी सेवाओं
की प्रकृति का उल्लेख साफ-साफ किया जाय।
- सेवापुस्तिका में प्रत्येक वर्ष सेवाओं की प्रकृति का
उल्लेख
व सत्यापन किया जाना चाहिए।
- अशक्तता (इनवैलिड) पेंशन के होने पर चिकित्सा
प्रमाण-पत्र के स्वीकार किये जाने का प्रमाण दिया जाना चाहिए।
- यदि कोई कर्मचारी स्वीकृत अवकाश के बाद भी अनुपस्थित
रहता है तो स्वीकर्ता अधिकारी के पास विकल्प है कि वह अवकाश को, जो कि ग्राह्य हो, बढ़ा दे अथवा मूल नियम 73, सपठित तदधीन नोट के अंतर्गत निहित प्रक्रिया के अनुसार
अनुपस्थित की अवधि के नियमितीकरण का आदेश निर्गत करें। यदि कोई कर्मचारी बिना
अवकाश के अनुपस्थित रहता है तो स्वीकर्ता अधिकारी अनुपस्थिति की अवधि को
असाधारण अवकाश में पूर्व तिथि से चाहे तो बदल सकता है। (राज्यपाल महोदय के आदेशों के साथ पठित मूल
नियम 85 बी)
- सेवापुस्तिका में प्रविष्टियाँ स्याही से अंकित की जाय
और उनका नियमित अभिप्रमाणन किया जाय।
- ओवर राइटिंग किसी भी दशा में न की जाय। त्रुटिपूर्ण
प्रविष्टियों को स्याही से काटकर नयी प्रविष्टि कर दी जाय। सक्षम अधिकारी
द्वारा इनको अपरिहार्य रूप से अभिप्रमाणित किया जाय।
5. सेवावृत्त
(सहायक नियम 148)
(क) सभी प्रकार के समूह घ के कर्मचारियों तथा पुलिस कर्मियों जिनकी श्रेणी हेड
कांस्टेबिल से उच्च न हो, का सेवा अभिलेख प्रपत्र संख्या-14
के सेवावृत्त में रखा जायेगा।
(ख) सेवावृत्त को बहुत सावधानी से जाँच की जानी
चाहिए और सेवा विवरण के अन्तर्गत सभी अपेक्षित सूचनायें भरी जानी चाहिए तथा
अभ्युक्ति के कालम में पूर्ण विवरण दिया जाना चाहिए। पेंशन के लिए प्रत्येक
कर्मचारी के सेवा का विवरण इसी सेवावृत्त से बनाया जायेगा।